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आर्टिकल 370 खत्म, चुनाव बॉन्ड योजना रद्द... : याद रखे जाएंगे चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के यह 10 महत्वपूर्ण फैसले


नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में दो साल का कार्यकाल पूरा करने वावे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का शुक्रवार को अंतिम कार्य दिवस था. वे रविवार, 10 नवंबर को सेवानिवृत्त होंगे और उनकी जगह अब जस्टिस संजीव खन्ना अगले चीफ जस्टिस होंगे. जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने कार्यकाल के अंतिम दिन संविधान पीठ की अध्यक्षता करते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक का दर्जा देने के मामले में एक अहम फैसला सुनाया. यह फैसला 4:3 के बहुमत से दिया गया. 
इस फैसले के जरिए संविधान पीठ ने सन 1967 के उस फैसले को पलट दिया जिसमें यूनिवर्सिटी से अल्पसंख्यक का दर्जा छीन लिया गया था. हालांकि संविधान पीठ ने यह भी कहा कि तीन जजों वाली पीठ तय करेगी कि दर्जा फिर से दिया जाना चाहिए या नहीं. 
सीजेआई के रूप में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कई महत्वपूर्ण फैसले दिए. यहां इनमें से कुछ प्रमुख फैसलों पर एक नजर:
चुनावी बॉन्ड केस
इस साल लोकसभा चुनावों से पहले फरवरी में सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने राजनीतिक फंडिंग के लिए चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था. यह योजना 2018 से लागू थी. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि यह योजना असंवैधानिक और मनमानी है और इससे राजनीतिक दलों और दानदाताओं के बीच लेन-देन की स्थिति पैदा हो सकती है.
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जस्टिस बीआर गवई, संजीव खन्ना, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को चुनावी बॉन्ड जारी करना तुरंत बंद करने का निर्देश दिया था और चुनाव आयोग को अप्रैल 2019 से चुनावी बॉन्ड के माध्यम से योगदान प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों का विवरण अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करने का आदेश दिया था.
निजी संपत्ति पर फैसला
इसी महीने की शुरुआत में जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली नौ जजों की संविधान पीठ ने 8:1 के बहुमत से दिए गए फैसले में कहा था कि सभी निजी स्वामित्व वाली संपत्तियां सामुदायिक संसाधन के रूप में योग्य नहीं हैं, जिन्हें राज्य आम भलाई के लिए अपने अधीन कर सकता है. यह मामला संविधान के अनुच्छेद 31सी से संबंधित है, जो राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों को पूरा करने के लिए राज्य द्वारा बनाए गए कानूनों की रक्षा करता है. उनमें से एक अनुच्छेद 39बी है, जो यह निर्धारित करता है कि राज्य अपनी नीति को यह सुनिश्चित करने की दिशा में निर्देशित करेगा कि समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस तरह से वितरित किया जाए कि आम भलाई के लिए सर्वोत्तम हो.
आर्टिकल 370
दिसंबर 2023 में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने आर्टिकल 370 को खत्म करने के फैसले को बरकरार रखा. आर्टिकल 370 से जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा हासिल था. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि अनुच्छेद 370 जम्मू और कश्मीर के भारत में विलय को आसान बनाने के लिए एक अस्थायी प्रावधान था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जम्मू और कश्मीर को राज्य का दर्जा जल्द से जल्द और जितनी जल्दी हो सके बहाल किया जाए. राज्य को लद्दाख सहित दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था. कोर्ट ने जम्मू और कश्मीर में 30 सितंबर, 2024 तक विधानसभा चुनाव कराने के लिए भी कहा था.
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समलैंगिक विवाह
जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने अक्टूबर 2023 में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था. कहा गया था कि कानून द्वारा मान्यता प्राप्त विवाहों को छोड़कर विवाह करने का "कोई अयोग्य अधिकार" नहीं है. विवाह समानता कानून बनाने का निर्णय विधानसभाओं पर छोड़ते हुए जजों ने केंद्र की इस दलील पर भी गौर किया कि कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाला एक पैनल समलैंगिक जोड़ों के सामने आने वाली व्यावहारिक कठिनाइयों पर विचार करेगा. पीठ ने सहमति जताई थी कि बुनियादी सेवाओं तक पहुंचने में समलैंगिक जोड़ों को भेदभाव का सामना करना पड़ता है. कोर्ट ने कहा था कि सरकारी पैनल को उन पर विचार करना चाहिए.
सेक्शन 6 ए
अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रमुख नागरिकता नियम की वैधता को बरकरार रखा था जिसके तहत असम समझौते को मान्यता दी गई थी. इसके तहत 1971 से पहले आए बांग्लादेशी शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान की गई. नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए 1985 में बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) से आए ऐसे शरणार्थियों को भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकरण की अनुमति देने के लिए पेश की गई थी, जिन्होंने 1966-1971 के बीच भारत में प्रवेश किया था. यह फैसला जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने 4:1 के बहुमत से सुनाया था.
जेलों में जाति आधारित भेदभाव
अक्टूबर में ही जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने शारीरिक श्रम के विभाजन, बैरकों के पृथक्करण और गैर-अधिसूचित जनजातियों और आदतन अपराधियों के कैदियों के प्रति पक्षपात जैसे जाति आधारित भेदभाव पर प्रतिबंध लगाया था. कोर्ट ने इस तरह के पक्षपात को बढ़ावा देने के लिए 10 राज्यों के जेल मैनुअल नियमों को "असंवैधानिक" करार दिया था. यह देखते हुए कि "सम्मान के साथ जीने का अधिकार कैदियों को भी है", पीठ ने केंद्र और राज्यों से तीन महीने के भीतर अपने जेल मैनुअल और कानूनों में संशोधन करने और अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था. पीठ ने कहा था, "औपनिवेशिक युग के आपराधिक कानून उत्तर-औपनिवेशिक दुनिया को प्रभावित करना जारी रखते हैं."
यूपी का मदरसा कानून
इस महीने की शुरुआत में सीजेआई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन जजों की पीठ ने उत्तर प्रदेश में मदरसों के कामकाज को रेगुलेट करने वाले 

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