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महायुति या MVA? महाराष्ट्र में किसका गणित बिगाड़ेगी MNS ?

मुंबई:कभी मराठी वार तो कभी हिंदुत्व वार. कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) का समर्थन तो कभी उनका विरोध. कभी उत्तर भारतीयों पर हमले, तो कभी किसी उत्तर भारतीय को ही मनसे का महासचिव पद दे देना. राज ठाकरे (Raj Thackeray) की राजनीति... राजनीति के बड़े-बड़े पंडितों का सिर चकरा देती है. उनकी पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) का इंजन अक्सर ट्रैक बदलता रहा है. अब वही राज ठाकरे महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 (Maharashtra Assembly Elections 2024) में उतर गए हैं. उनकी पार्टी 25 सीटों पर ताल ठोक रही है. आइए समझते हैं आखिर राज ठाकरे ऐन वक्त पर चुनावी मैदान में उतरकर महायुति (Mahayuti) और महा विकास अघाड़ी (MVA) में किसका गणित खराब करेंगे? आखिर महाराष्ट्र में क्या है राज ठाकरे की 'राज' नीति:-
2003 में बाला साहेब ठाकरे के तीसरे बेटे उद्धव ठाकरे को उनका सियासी उत्तराधिकारी घोषित किया गया था. महाबलेश्वर में आयोजित किए गए एक सम्मेलन के दौरान उद्धव ठाकरे की बतौर शिवसेना के कार्य अध्यक्ष नियुक्ति हुई. ये फैसला कइयों के लिए चौंकाने वाला था. खासकर उन लोगों के लिए ये हैरानी की बात थी, जो ये मान बैठे थे कि राज ठाकरे को शिवसेना का भावी नेता और बाला साहेब ठाकरे का सियासी वारिस चुना जाएगा. वैसे राज ठाकरे को बाला साहेब ठाकरे के सियासी वारिस के तौर पर देखना तर्कहीन नहीं था. चाचा और भतीजे की सोच में काफी समानता थी. लेकिन, वैसा हो ना सका. वो साल दूसरा था. ये साल दूसरा है. 
BJP और शिंदे गुट के खिलाफ 22 सीटों पर उतारे कैंडिडेट
गौर करने वाली बात ये है कि राज ठाकरे की पार्टी ने BJP और शिंदे गुट के खिलाफ 22 सीटों पर कैंडिडेट उतारे हैं. ऐसा करके उन्होंने महायुति के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है. दूसरी ओर, वर्ली में MNS ने संदीप देशपांडे को उतारा है. इस सीट से उद्धव ठाकरे ने अपने बेटे आदित्य ठाकरे को उतारा है. जबकि शिंदे गुट से सदा सर्वांकर चुनौती दे रहे हैं. राजनीति के पंडितों का मानना है कि MNS की तरफ से किसी भी तरह का वोट शिफ्ट हुआ, तो महायुति और महा विकास अघाड़ी दोनों का खेल बिगड़ सकता है. 
कौन हैं राज ठाकरे?
राज ठाकरे बाला साहेब ठाकरे के भाई श्रीकांत ठाकरे के बेटे हैं. परिवार संगीतप्रेमी होने के कारण उनका नाम स्वरराज रखा गया, जो सार्वजनिक जीवन में सिर्फ राज हो गया. अपने चाचा बाला साहेब की तरह राज ठाकरे को भी कार्टून बनाने का शौक था, लेकिन बचपन से ही घर में राजनीतिक माहौल होने के कारण उनका भी रूझान सियासत की तरफ हुआ. वो शिवसेना में सक्रिय हो गये.
माइकल जैक्सन को बुलाकर विवादों में उलझे थे राज ठाकरे
बाला साहेब ठाकरे ने उन्हें शिवसेना की छात्र इकाई भारतीय विद्यार्थी सेना का अध्यक्ष बनाया. 90 के दशक के मध्य में उन्होंने मराठी युवाओं को रोजगार दिलाने के मकसद से शिव उद्योग सेना की शुरुआत की. पार्टी की इस नई इकाई की खातिर फंड जुटाने के लिये उन्होने कुछ ऐसा किया, जिससे सभी चौंक गये. उन्होने प़ॉप स्टार माइकल जैक्सन को मुंबई के अंधेरी स्पोर्टस कॉम्प्लैक्स में एक शो आयोजित करने के लिए इनवाइट किया. राज ठाकरे का ये फैसला शिवसेना की छवि से मेल नहीं खा रहा था. एक तरह शिवसेना पश्चिमी संस्कृति के विरोध के नाम पर 'वैलेंटाइन डे' मनाने वाले कपल को पीटती थी, तो दूसरी तरफ उसकी ओर से माइकल जैक्सन को बुलाया जाना बड़ा विरोधाभास था.
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किणी कांड के तौर पर आया बड़ा तूफान
इस बीच राज ठाकरे के जीवन में एक तूफान आया, जिसने कि उनके सियासी सफर की दिशा बदल दी. ये तूफान किणी कांड की शक्ल में था. रमेश किणी नाम के एक शख्स से राज ठाकरे का एक बिल्डर दोस्त दादर की हिंदू कॉलनी में घर खाली करने के लिये दबाव डाल रहा था...लेकिन किणी घर खाली करने को तैयार नहीं था. 23 जुलाई 1996 को पुणे के एक सिनेमाघर में उसकी लाश बरामद हुई. किणी की पत्नी शीला ने कहा कि उस दिन उन्हें सामना के कार्यालय में बुलाया गया था.
रमेश किणी की मौत ने महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल ला दिया. उन दिनों महाराष्ट्र में शिवसेना और बीजेपी की सरकार थी. मनोहर जोशी मुख्यमंत्री थे. विपक्ष के कांग्रेसी नेता छगन भुजबल ने राज ठाकरे के खिलाफ मुहीम छेड़ दी. उन्होंने आरोप लगाया कि किणी की हत्या के पीछे राज ठाकरे का हाथ है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने जांच CBI को सौंप दी. राज ठाकरे को पूछताछ के लिये CBI के सामने हाजिर होना पडा. हालांकि, ठाकरे गिरफ्तारी से तो बच गये, लेकिन उनके खास दोस्त आशुतोष राणे को CBI ने गिरफ्तार कर लिया.
भले ही राज ठाकरे जेल न गये हों, लेकिन इस विवाद के बाद से शिवसेना में उन्हें दरकिनार किया जाने लगा. यही वो मोड़ था जब उद्धव ठाकरे ने पार्टी पर अपनी पकड़ मजबूत करनी शुरू कर दी. इसके बाद से राज और उद्धव के बीच खींचतान की खबरें भी आने लगीं. विधानसभा और मुंबई महानगरपालिका के चुनावों में राज ठाकरे समर्थकों के टिकट कटने लगे. टिकट बंटवारे की प्रक्रिया में उद्धव ठाकरे हावी रहते थे.
मी मुंबईकर महीम से दोनों भाइयों में बढ़ी तनातनी
राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच तनातनी की एक मिसाल 2003 में देखने मिली, जब उद्धव ठाकरे ने 'मी मुंबईकर' नाम की मुहीम शुरू की. इसी मुहीम के तहत उद्धव का इरादा सभी प्रांत के लोगों को शिवसेना से जोड़ने का था, लेकिन राज ठाकरे इसका उलटा कर दिया. उनके समर्थकों ने कल्याण रेलवे स्टेशन पर रेलवे भर्ती की परीक्षा देने उत्तर प्रदेश और बिहार से आये परीक्षार्थियों को दौड़ा दौड़ा कर पीटा.
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2003 के बाद पार्टी में बढ़ने लगा था राज ठाकरे का दबदबा
2003 में कार्याध्यक्ष नियुक्त होने के बाद पार्टी में उद्धव ठाकरे का दबदबा और बढ़ गया. 

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