
'सीजफायर की बात अभी जल्दबाजी', थमती नहीं दिख रही थाईलैंड-कंबोडिया जंग
दक्षिण-पूर्व एशिया में थाईलैंड और कंबोडिया के बीच चल रहा सैन्य संघर्ष थमने का नाम नहीं ले रहा है। दोनों देशों के बीच सीमा पर स्थित प्राचीन हिंदू मंदिर प्रीह विहेयर और ता मुएन थॉम को लेकर लंबे समय से विवाद चला आ रहा है, जो अब हिंसक रूप ले चुका है। गुरुवार सुबह शुरू हुई गोलीबारी और रॉकेट हमलों के बाद शुक्रवार को भी झड़पें जारी रहीं, जिसने क्षेत्रीय शांति को खतरे में डाल दिया है।
युद्ध की शुरुआत और वर्तमान स्थिति
गुरुवार सुबह थाईलैंड की सीमा पर कंबोडिया के एक ड्रोन की मौजूदगी ने तनाव को हवा दी। थाईलैंड के सैनिकों ने सुरीन प्रांत में ता मुएन थॉम मंदिर के पास छह सशस्त्र कंबोडियाई सैनिकों को देखा, जिसके बाद दोनों पक्षों में गोलीबारी शुरू हो गई। कंबोडिया ने बीएम-21 ग्रैड रॉकेट लॉन्चरों से थाईलैंड के सैन्य और नागरिक ठिकानों पर हमले किए, जिसमें कम से कम 14 लोग मारे गए, जिनमें 13 नागरिक और एक सैनिक शामिल हैं। जवाब में, थाईलैंड ने अपने एफ-16 लड़ाकू विमानों से कंबोडिया के सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले किए, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया।
मानवीय संकट और विस्थापन
इस संघर्ष ने भारी मानवीय संकट को जन्म दिया है। थाईलैंड के गृह मंत्रालय के अनुसार, चार सीमावर्ती प्रांतों से 1,30,000 से अधिक लोगों को 300 अस्थायी आश्रयों में स्थानांतरित किया गया है। कंबोडिया के ओड्डार मीनचे प्रांत में भी करीब 4,000 लोग विस्थापित हुए हैं। दोनों देशों ने अपनी सीमाएं सील कर दी हैं और राजनयिक संबंधों में कटौती की है। थाईलैंड ने कंबोडिया में रहने वाले अपने नागरिकों से तत्काल देश छोड़ने की अपील की है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और युद्धविराम की मांग
कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन मानेट के अनुरोध पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने शुक्रवार रात 12:30 बजे (भारतीय समयानुसार) एक आपातकालीन बैठक बुलाई है। अमेरिका, फ्रांस, यूरोपीय संघ और चीन ने इस संघर्ष को तत्काल समाप्त करने की अपील की है। हालांकि, थाईलैंड के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, "सीजफायर की बात करना अभी जल्दबाजी होगी, जब तक कंबोडिया अपनी आक्रामक कार्रवाई नहीं रोकता।" थाईलैंड के कार्यवाहक प्रधानमंत्री फुमथम वेचायाचाई ने चेतावनी दी है कि यह विवाद "युद्ध की ओर बढ़ सकता है।"
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच यह विवाद 1907 में फ्रांस द्वारा बनाए गए नक्शे से शुरू हुआ, जब कंबोडिया फ्रांसीसी उपनिवेश था। 1962 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने प्रीह विहेयर मंदिर को कंबोडिया का हिस्सा घोषित किया, लेकिन आसपास के क्षेत्रों पर विवाद बरकरार रहा। 2008 में मंदिर को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिलने के बाद तनाव और बढ़ गया, जिसके परिणामस्वरूप 2008-2011 के बीच कई झड़पें हुईं। मई 2025 में एक कंबोडियाई सैनिक की मौत ने इस तनाव को फिर से भड़का दिया।
भू-राजनीतिक प्रभाव
यह संघर्ष केवल दो देशों तक सीमित नहीं है। कंबोडिया को चीन का करीबी सहयोगी माना जाता है, जबकि थाईलैंड का झुकाव अमेरिका की ओर है। विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद चीन और अमेरिका के बीच एक छद्म युद्ध का रूप ले सकता है। हालांकि, चीन ने दोनों देशों से शांति की अपील की है और किसी भी पक्ष का खुलकर समर्थन नहीं किया है। भारत ने भी अपने नागरिकों को थाईलैंड के सात संवेदनशील प्रांतों की यात्रा से बचने की सलाह दी है।
क्या है आगे की राह?
विश्लेषकों का कहना है कि दोनों देशों के बीच पूर्ण युद्ध की संभावना कम है, लेकिन मौजूदा नेतृत्व में तनाव कम करने की पर्याप्त इच्छाशक्ति का अभाव दिखता है। थाईलैंड में राजनीतिक अस्थिरता और कंबोडिया में आर्थिक संकट इस स्थिति को और जटिल बना रहे हैं। आसियान देशों की भूमिका इस विवाद को सुलझाने में महत्वपूर्ण हो सकती है, लेकिन अभी तक कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है।
जैसे-जैसे यह संघर्ष बढ़ता जा रहा है, दुनिया की नजर इस क्षेत्र पर टिकी है। क्या यह विवाद शांतिपूर्ण बातचीत से हल होगा या एक बड़े क्षेत्रीय संकट में तब्दील होगा, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट हो जाएगा।
दक्षिण-पूर्व एशिया में थाईलैंड और कंबोडिया के बीच चल रहा सैन्य संघर्ष थमने का नाम नहीं ले रहा है। दोनों देशों के बीच सीमा पर स्थित प्राचीन हिंदू मंदिर प्रीह विहेयर और ता मुएन थॉम को लेकर लंबे समय से विवाद चला आ रहा है, जो अब हिंसक रूप ले चुका है। गुरुवार सुबह शुरू हुई गोलीबारी और रॉकेट हमलों के बाद शुक्रवार को भी झड़पें जारी रहीं, जिसने क्षेत्रीय शांति को खतरे में डाल दिया है।
युद्ध की शुरुआत और वर्तमान स्थिति
गुरुवार सुबह थाईलैंड की सीमा पर कंबोडिया के एक ड्रोन की मौजूदगी ने तनाव को हवा दी। थाईलैंड के सैनिकों ने सुरीन प्रांत में ता मुएन थॉम मंदिर के पास छह सशस्त्र कंबोडियाई सैनिकों को देखा, जिसके बाद दोनों पक्षों में गोलीबारी शुरू हो गई। कंबोडिया ने बीएम-21 ग्रैड रॉकेट लॉन्चरों से थाईलैंड के सैन्य और नागरिक ठिकानों पर हमले किए, जिसमें कम से कम 14 लोग मारे गए, जिनमें 13 नागरिक और एक सैनिक शामिल हैं। जवाब में, थाईलैंड ने अपने एफ-16 लड़ाकू विमानों से कंबोडिया के सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले किए, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया।
मानवीय संकट और विस्थापन
इस संघर्ष ने भारी मानवीय संकट को जन्म दिया है। थाईलैंड के गृह मंत्रालय के अनुसार, चार सीमावर्ती प्रांतों से 1,30,000 से अधिक लोगों को 300 अस्थायी आश्रयों में स्थानांतरित किया गया है। कंबोडिया के ओड्डार मीनचे प्रांत में भी करीब 4,000 लोग विस्थापित हुए हैं। दोनों देशों ने अपनी सीमाएं सील कर दी हैं और राजनयिक संबंधों में कटौती की है। थाईलैंड ने कंबोडिया में रहने वाले अपने नागरिकों से तत्काल देश छोड़ने की अपील की है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और युद्धविराम की मांग
कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन मानेट के अनुरोध पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने शुक्रवार रात 12:30 बजे (भारतीय समयानुसार) एक आपातकालीन बैठक बुलाई है। अमेरिका, फ्रांस, यूरोपीय संघ और चीन ने इस संघर्ष को तत्काल समाप्त करने की अपील की है। हालांकि, थाईलैंड के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, "सीजफायर की बात करना अभी जल्दबाजी होगी, जब तक कंबोडिया अपनी आक्रामक कार्रवाई नहीं रोकता।" थाईलैंड के कार्यवाहक प्रधानमंत्री फुमथम वेचायाचाई ने चेतावनी दी है कि यह विवाद "युद्ध की ओर बढ़ सकता है।"
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच यह विवाद 1907 में फ्रांस द्वारा बनाए गए नक्शे से शुरू हुआ, जब कंबोडिया फ्रांसीसी उपनिवेश था। 1962 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने प्रीह विहेयर मंदिर को कंबोडिया का हिस्सा घोषित किया, लेकिन आसपास के क्षेत्रों पर विवाद बरकरार रहा। 2008 में मंदिर को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिलने के बाद तनाव और बढ़ गया, जिसके परिणामस्वरूप 2008-2011 के बीच कई झड़पें हुईं। मई 2025 में एक कंबोडियाई सैनिक की मौत ने इस तनाव को फिर से भड़का दिया।
भू-राजनीतिक प्रभाव
यह संघर्ष केवल दो देशों तक सीमित नहीं है। कंबोडिया को चीन का करीबी सहयोगी माना जाता है, जबकि थाईलैंड का झुकाव अमेरिका की ओर है। विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद चीन और अमेरिका के बीच एक छद्म युद्ध का रूप ले सकता है। हालांकि, चीन ने दोनों देशों से शांति की अपील की है और किसी भी पक्ष का खुलकर समर्थन नहीं किया है। भारत ने भी अपने नागरिकों को थाईलैंड के सात संवेदनशील प्रांतों की यात्रा से बचने की सलाह दी है।
क्या है आगे की राह?
विश्लेषकों का कहना है कि दोनों देशों के बीच पूर्ण युद्ध की संभावना कम है, लेकिन मौजूदा नेतृत्व में तनाव कम करने की पर्याप्त इच्छाशक्ति का अभाव दिखता है। थाईलैंड में राजनीतिक अस्थिरता और कंबोडिया में आर्थिक संकट इस स्थिति को और जटिल बना रहे हैं। आसियान देशों की भूमिका इस विवाद को सुलझाने में महत्वपूर्ण हो सकती है, लेकिन अभी तक कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है।
जैसे-जैसे यह संघर्ष बढ़ता जा रहा है, दुनिया की नजर इस क्षेत्र पर टिकी है। क्या यह विवाद शांतिपूर्ण बातचीत से हल होगा या एक बड़े क्षेत्रीय संकट में तब्दील होगा, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट हो जाएगा।
युद्ध की शुरुआत और वर्तमान स्थिति
गुरुवार सुबह थाईलैंड की सीमा पर कंबोडिया के एक ड्रोन की मौजूदगी ने तनाव को हवा दी। थाईलैंड के सैनिकों ने सुरीन प्रांत में ता मुएन थॉम मंदिर के पास छह सशस्त्र कंबोडियाई सैनिकों को देखा, जिसके बाद दोनों पक्षों में गोलीबारी शुरू हो गई। कंबोडिया ने बीएम-21 ग्रैड रॉकेट लॉन्चरों से थाईलैंड के सैन्य और नागरिक ठिकानों पर हमले किए, जिसमें कम से कम 14 लोग मारे गए, जिनमें 13 नागरिक और एक सैनिक शामिल हैं। जवाब में, थाईलैंड ने अपने एफ-16 लड़ाकू विमानों से कंबोडिया के सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले किए, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर पहुंच गया।
मानवीय संकट और विस्थापन
इस संघर्ष ने भारी मानवीय संकट को जन्म दिया है। थाईलैंड के गृह मंत्रालय के अनुसार, चार सीमावर्ती प्रांतों से 1,30,000 से अधिक लोगों को 300 अस्थायी आश्रयों में स्थानांतरित किया गया है। कंबोडिया के ओड्डार मीनचे प्रांत में भी करीब 4,000 लोग विस्थापित हुए हैं। दोनों देशों ने अपनी सीमाएं सील कर दी हैं और राजनयिक संबंधों में कटौती की है। थाईलैंड ने कंबोडिया में रहने वाले अपने नागरिकों से तत्काल देश छोड़ने की अपील की है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और युद्धविराम की मांग
कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन मानेट के अनुरोध पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने शुक्रवार रात 12:30 बजे (भारतीय समयानुसार) एक आपातकालीन बैठक बुलाई है। अमेरिका, फ्रांस, यूरोपीय संघ और चीन ने इस संघर्ष को तत्काल समाप्त करने की अपील की है। हालांकि, थाईलैंड के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, "सीजफायर की बात करना अभी जल्दबाजी होगी, जब तक कंबोडिया अपनी आक्रामक कार्रवाई नहीं रोकता।" थाईलैंड के कार्यवाहक प्रधानमंत्री फुमथम वेचायाचाई ने चेतावनी दी है कि यह विवाद "युद्ध की ओर बढ़ सकता है।"
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच यह विवाद 1907 में फ्रांस द्वारा बनाए गए नक्शे से शुरू हुआ, जब कंबोडिया फ्रांसीसी उपनिवेश था। 1962 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने प्रीह विहेयर मंदिर को कंबोडिया का हिस्सा घोषित किया, लेकिन आसपास के क्षेत्रों पर विवाद बरकरार रहा। 2008 में मंदिर को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिलने के बाद तनाव और बढ़ गया, जिसके परिणामस्वरूप 2008-2011 के बीच कई झड़पें हुईं। मई 2025 में एक कंबोडियाई सैनिक की मौत ने इस तनाव को फिर से भड़का दिया।
भू-राजनीतिक प्रभाव
यह संघर्ष केवल दो देशों तक सीमित नहीं है। कंबोडिया को चीन का करीबी सहयोगी माना जाता है, जबकि थाईलैंड का झुकाव अमेरिका की ओर है। विश्लेषकों का मानना है कि यह विवाद चीन और अमेरिका के बीच एक छद्म युद्ध का रूप ले सकता है। हालांकि, चीन ने दोनों देशों से शांति की अपील की है और किसी भी पक्ष का खुलकर समर्थन नहीं किया है। भारत ने भी अपने नागरिकों को थाईलैंड के सात संवेदनशील प्रांतों की यात्रा से बचने की सलाह दी है।
क्या है आगे की राह?
विश्लेषकों का कहना है कि दोनों देशों के बीच पूर्ण युद्ध की संभावना कम है, लेकिन मौजूदा नेतृत्व में तनाव कम करने की पर्याप्त इच्छाशक्ति का अभाव दिखता है। थाईलैंड में राजनीतिक अस्थिरता और कंबोडिया में आर्थिक संकट इस स्थिति को और जटिल बना रहे हैं। आसियान देशों की भूमिका इस विवाद को सुलझाने में महत्वपूर्ण हो सकती है, लेकिन अभी तक कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है।
जैसे-जैसे यह संघर्ष बढ़ता जा रहा है, दुनिया की नजर इस क्षेत्र पर टिकी है। क्या यह विवाद शांतिपूर्ण बातचीत से हल होगा या एक बड़े क्षेत्रीय संकट में तब्दील होगा, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट हो जाएगा।