
महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी वैकल्पिक, मराठी अनिवार्य! राज ठाकरे को फडणवीस का कड़ा जवाब
मुंबई, 18 जून, 2025: महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी भाषा को अनिवार्य करने के फैसले पर उठे विवाद के बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने स्पष्ट रुख अपनाया है। फडणवीस ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत तीसरी भाषा के नियम का विरोध करने वाले महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे को कड़ा जवाब दिया है। फडणवीस ने घोषणा की कि हिंदी भाषा अब अनिवार्य नहीं बल्कि वैकल्पिक होगी, जबकि मराठी भाषा अनिवार्य रहेगी।
16 अप्रैल, 2025 को जारी सरकारी आदेश के अनुसार, महाराष्ट्र सरकार ने कक्षा 1 से 5 तक मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को अनिवार्य करने का फैसला किया था। राज ठाकरे ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया था। उन्होंने दावा किया कि हिंदी को अनिवार्य बनाने से मराठी भाषा और महाराष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान को नुकसान पहुंचेगा। ठाकरे ने कड़ा बयान देते हुए कहा, "हिंदी राष्ट्रीय भाषा नहीं है और इसे महाराष्ट्र में अनिवार्य नहीं होने दिया जाएगा।" उन्होंने स्कूल प्रिंसिपलों को पत्र लिखकर मराठी और अंग्रेजी पर जोर देने की मांग की। इस विवाद के मद्देनजर फडणवीस ने सरकार का रुख स्पष्ट करते हुए कहा, "हिंदी अनिवार्य नहीं होगी, बल्कि वैकल्पिक होगी। जिन स्कूलों में 20 या उससे अधिक छात्र अन्य भारतीय भाषाएं सीखने के इच्छुक हैं, वहां ऑनलाइन कक्षाएं उपलब्ध कराई जाएंगी।" उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि मराठी भाषा अनिवार्य रहेगी और तीसरी भाषा चुनने में लचीलापन होगा। फडणवीस ने आगे स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में तीन-भाषा सूत्र को महाराष्ट्र में अपनाया जाएगा, लेकिन मराठी की स्थिति किसी भी तरह से प्रभावित नहीं होगी। हालांकि राज ठाकरे ने हिंदी की अनिवार्यता के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया, लेकिन सरकार द्वारा अपने फैसले में संशोधन करने और हिंदी को वैकल्पिक बनाने के बाद विवाद कुछ हद तक सुलझ गया है। हालांकि, मनसे ने मराठी भाषा के उपयोग और संरक्षण पर जोर देकर अपनी लड़ाई जारी रखने का संकल्प व्यक्त किया है। दूसरी ओर, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और कांग्रेस जैसी पार्टियों ने भी इस मुद्दे पर भाजपा की आलोचना की है। कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने हिंदी थोपे जाने को "मराठी पर हमला" बताया, जबकि शिवसेना (उभाठा) नेता आनंद दुबे ने मराठी पढ़ाने के लिए विशेष कक्षाएं खोलने की घोषणा की। इस फैसले और इस पर राजनीतिक प्रतिक्रिया ने एक बार फिर महाराष्ट्र में भाषाई पहचान के मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया है। उम्मीद है कि सरकार की संशोधित नीति यह सुनिश्चित करेगी कि मराठी की स्थिति बरकरार रहे।
मुंबई, 18 जून, 2025: महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी भाषा को अनिवार्य करने के फैसले पर उठे विवाद के बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने स्पष्ट रुख अपनाया है। फडणवीस ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत तीसरी भाषा के नियम का विरोध करने वाले महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे को कड़ा जवाब दिया है। फडणवीस ने घोषणा की कि हिंदी भाषा अब अनिवार्य नहीं बल्कि वैकल्पिक होगी, जबकि मराठी भाषा अनिवार्य रहेगी।
16 अप्रैल, 2025 को जारी सरकारी आदेश के अनुसार, महाराष्ट्र सरकार ने कक्षा 1 से 5 तक मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को अनिवार्य करने का फैसला किया था। राज ठाकरे ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया था। उन्होंने दावा किया कि हिंदी को अनिवार्य बनाने से मराठी भाषा और महाराष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान को नुकसान पहुंचेगा। ठाकरे ने कड़ा बयान देते हुए कहा, "हिंदी राष्ट्रीय भाषा नहीं है और इसे महाराष्ट्र में अनिवार्य नहीं होने दिया जाएगा।" उन्होंने स्कूल प्रिंसिपलों को पत्र लिखकर मराठी और अंग्रेजी पर जोर देने की मांग की। इस विवाद के मद्देनजर फडणवीस ने सरकार का रुख स्पष्ट करते हुए कहा, "हिंदी अनिवार्य नहीं होगी, बल्कि वैकल्पिक होगी। जिन स्कूलों में 20 या उससे अधिक छात्र अन्य भारतीय भाषाएं सीखने के इच्छुक हैं, वहां ऑनलाइन कक्षाएं उपलब्ध कराई जाएंगी।" उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि मराठी भाषा अनिवार्य रहेगी और तीसरी भाषा चुनने में लचीलापन होगा। फडणवीस ने आगे स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में तीन-भाषा सूत्र को महाराष्ट्र में अपनाया जाएगा, लेकिन मराठी की स्थिति किसी भी तरह से प्रभावित नहीं होगी। हालांकि राज ठाकरे ने हिंदी की अनिवार्यता के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया, लेकिन सरकार द्वारा अपने फैसले में संशोधन करने और हिंदी को वैकल्पिक बनाने के बाद विवाद कुछ हद तक सुलझ गया है। हालांकि, मनसे ने मराठी भाषा के उपयोग और संरक्षण पर जोर देकर अपनी लड़ाई जारी रखने का संकल्प व्यक्त किया है। दूसरी ओर, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और कांग्रेस जैसी पार्टियों ने भी इस मुद्दे पर भाजपा की आलोचना की है। कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने हिंदी थोपे जाने को "मराठी पर हमला" बताया, जबकि शिवसेना (उभाठा) नेता आनंद दुबे ने मराठी पढ़ाने के लिए विशेष कक्षाएं खोलने की घोषणा की। इस फैसले और इस पर राजनीतिक प्रतिक्रिया ने एक बार फिर महाराष्ट्र में भाषाई पहचान के मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया है। उम्मीद है कि सरकार की संशोधित नीति यह सुनिश्चित करेगी कि मराठी की स्थिति बरकरार रहे।
16 अप्रैल, 2025 को जारी सरकारी आदेश के अनुसार, महाराष्ट्र सरकार ने कक्षा 1 से 5 तक मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को अनिवार्य करने का फैसला किया था। राज ठाकरे ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया था। उन्होंने दावा किया कि हिंदी को अनिवार्य बनाने से मराठी भाषा और महाराष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान को नुकसान पहुंचेगा। ठाकरे ने कड़ा बयान देते हुए कहा, "हिंदी राष्ट्रीय भाषा नहीं है और इसे महाराष्ट्र में अनिवार्य नहीं होने दिया जाएगा।" उन्होंने स्कूल प्रिंसिपलों को पत्र लिखकर मराठी और अंग्रेजी पर जोर देने की मांग की। इस विवाद के मद्देनजर फडणवीस ने सरकार का रुख स्पष्ट करते हुए कहा, "हिंदी अनिवार्य नहीं होगी, बल्कि वैकल्पिक होगी। जिन स्कूलों में 20 या उससे अधिक छात्र अन्य भारतीय भाषाएं सीखने के इच्छुक हैं, वहां ऑनलाइन कक्षाएं उपलब्ध कराई जाएंगी।" उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि मराठी भाषा अनिवार्य रहेगी और तीसरी भाषा चुनने में लचीलापन होगा। फडणवीस ने आगे स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में तीन-भाषा सूत्र को महाराष्ट्र में अपनाया जाएगा, लेकिन मराठी की स्थिति किसी भी तरह से प्रभावित नहीं होगी। हालांकि राज ठाकरे ने हिंदी की अनिवार्यता के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया, लेकिन सरकार द्वारा अपने फैसले में संशोधन करने और हिंदी को वैकल्पिक बनाने के बाद विवाद कुछ हद तक सुलझ गया है। हालांकि, मनसे ने मराठी भाषा के उपयोग और संरक्षण पर जोर देकर अपनी लड़ाई जारी रखने का संकल्प व्यक्त किया है। दूसरी ओर, शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और कांग्रेस जैसी पार्टियों ने भी इस मुद्दे पर भाजपा की आलोचना की है। कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने हिंदी थोपे जाने को "मराठी पर हमला" बताया, जबकि शिवसेना (उभाठा) नेता आनंद दुबे ने मराठी पढ़ाने के लिए विशेष कक्षाएं खोलने की घोषणा की। इस फैसले और इस पर राजनीतिक प्रतिक्रिया ने एक बार फिर महाराष्ट्र में भाषाई पहचान के मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया है। उम्मीद है कि सरकार की संशोधित नीति यह सुनिश्चित करेगी कि मराठी की स्थिति बरकरार रहे।