
नागपुर में आरक्षण बचाने के लिए ओबीसी समुदाय ने निकाला विशाल मार्च; 2 सितंबर के ब्लैक जीआर को निरस्त करने की मांग
विदर्भ ओबीसी मोर्चा का महाअभियान: आरक्षण अधिकारों के लिए 'ब्लैक जीआर' के खिलाफ हजारों की लड़ाई
नागपुर, 10 अक्टूबर, 2025: महाराष्ट्र के विदर्भ में ओबीसी समुदाय ने अपने आरक्षण अधिकारों के लिए एकजुट होकर आवाज उठाई। नागपुर शहर में आयोजित 'आरक्षण बचाओ महामोर्चा' में हजारों ओबीसी कार्यकर्ताओं, नेताओं और आम नागरिकों ने भाग लिया। यह मार्च ओबीसी समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ने वाले विदर्भ ओबीसी मोर्चा संगठन द्वारा आयोजित किया गया था और इसकी मुख्य मांग 2 सितंबर, 2024 को राज्य सरकार द्वारा जारी 'ब्लैक जीआर' (सरकारी प्रस्ताव) को निरस्त करना था। इस प्रस्ताव को ओबीसी आरक्षण पर हमला बताते हुए, प्रदर्शनकारियों ने सरकार की नींद उड़ा दी।
मार्च सुबह 10 बजे नागपुर के झांसी चौक से शुरू हुआ। वहां से शुरू हुआ भव्य जुलूस रेसकोर्स रोड, सिविल लाइंस और मनपा चौक होते हुए आगे बढ़ा। मार्च में शामिल कार्यकर्ताओं ने शहर के मुख्य मार्गों पर 'ओबीसी आरक्षण ज़िंदाबाद', 'काला जीआर खत्म करो', 'हम आरक्षण का अधिकार नहीं छोड़ेंगे' जैसे नारे लगाकर अपना रोष व्यक्त किया। मार्च में महिलाओं, युवाओं और छात्रों का एक बड़ा वर्ग शामिल हुआ। विशेषकर विदर्भ के ग्रामीण इलाकों के किसानों और मजदूरों ने इस मार्च को दिशा दी। विदर्भ ओबीसी मोर्चा संगठन के प्रमुख नेता प्रकाश गजभिये ने मार्च का समापन करते हुए कहा, "2 सितंबर का यह काला जीआर ओबीसी समुदाय के कंधों पर थोपा गया अन्याय है। यह प्रस्ताव शैक्षणिक और नौकरी के आरक्षण को प्रभावित करता है। सरकार को तुरंत इसके कार्यान्वयन पर रोक लगानी चाहिए और इसे रद्द करना चाहिए। अन्यथा, हमारी लड़ाई और भी तेज होगी।"
यह विवादास्पद 'काला जीआर' क्या है? राज्य सरकार द्वारा 2 सितंबर, 2024 को जारी इस प्रस्ताव में ओबीसी आरक्षण के कुछ प्रावधानों में बदलाव किया गया था। इसमें ओबीसी को मिलने वाले 27 प्रतिशत आरक्षण में कुछ नए मानदंड लागू किए गए, जिससे क्रीमी लेयर की परिभाषा बदल गई और कई परिवारों के आरक्षण से वंचित होने की संभावना पैदा हो गई। साथ ही, आरक्षण की पात्रता की जाँच के लिए कुछ विभागों में कड़े नियम लागू किए गए, जिससे विदर्भ और मराठवाड़ा के ओबीसी समुदाय में असंतोष पैदा हुआ। ओबीसी नेताओं के अनुसार, यह प्रस्ताव मराठा आरक्षण के नाम पर ओबीसी के अधिकारों का अतिक्रमण करता है। ओबीसी समुदाय को डर है कि पिछले साल मराठा समुदाय को मिले 10 प्रतिशत आरक्षण के बाद ओबीसी आरक्षण कम हो जाएगा। इसी पृष्ठभूमि में यह महामोर्चा निकाला गया।
मार्च में शामिल एक युवा कार्यकर्ता ने कहा, "हम पढ़ाई करते हैं, नौकरी के लिए संघर्ष करते हैं, लेकिन अगर आरक्षण नहीं होगा तो हमारा भविष्य क्या होगा? सरकार ने हमारे अधिकारों पर हमला किया है। हम यह लड़ाई नहीं छोड़ेंगे।" मार्च में शामिल लोग विभिन्न बैनर, तख्तियाँ और नारे लिखे हुए मार्च कर रहे थे। कहीं कलाकारों ने नाटक करके सरकार की नीतियों का मज़ाक उड़ाया, तो कहीं ओबीसी नेताओं की तस्वीरें लेकर जुलूस निकाले। मार्च मनपा चौक पर समाप्त हुआ, जहाँ विदर्भ ओबीसी मोर्चा संगठन के नेताओं ने एक सभा को संबोधित किया। प्रदेश अध्यक्ष रमेश बोंधले ने कहा, "महाराष्ट्र में ओबीसी समुदाय की आबादी 52 प्रतिशत है। हमें न्याय चाहिए। यह मार्च तो बस शुरुआत है। आने वाले दिनों में राज्यव्यापी आंदोलन होगा।"
यह मार्च केवल नागपुर तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अमरावती, अकोला, वाशिम, भंडारा और चंद्रपुर समेत विदर्भ के अन्य जिलों के ओबीसी संगठनों ने भी इसका समर्थन किया है। विदर्भ ओबीसी मोर्चा संगठन ने कहा कि यह लड़ाई न्यायिक स्तर पर भी लड़ी जाएगी। यह प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट में चल रहे ओबीसी आरक्षण मामले में एक अहम पड़ाव साबित हो सकता है। इस बीच, राज्य सरकार की ओर से अभी तक इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालाँकि, ओबीसी नेताओं के अनुसार, अगर सरकार इस प्रस्ताव को तुरंत वापस नहीं लेती है, तो विदर्भ में एक ज़ोरदार आंदोलन होगा।
ओबीसी आरक्षण के इतिहास पर नज़र डालें तो मंडल आयोग की सिफारिशों के अनुसार 1990 से ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है। महाराष्ट्र में, मराठा, धनगर और अन्य समुदायों की मांगों के कारण भले ही आरक्षण बढ़ा हो, ओबीसी अधिकारों की रक्षा करना ज़रूरी है। यह मार्च ओबीसी समुदाय की एकता का प्रतीक बन गया है और इसका राज्य के राजनीतिक माहौल पर भी असर पड़ सकता है। आगामी चुनावों की पृष्ठभूमि में, ओबीसी मतदाताओं का यह गुस्सा सत्तारूढ़ दलों के लिए चिंता का विषय बन गया है।
विदर्भ ओबीसी मोर्चा संगठन ने मार्च के बाद विरोध प्रदर्शन की योजना की घोषणा की। इसमें घोषणा की गई कि अगर 15 अक्टूबर तक 'काला आरक्षण' वापस नहीं लिया गया, तो पूरे राज्य में काला दिवस मनाया जाएगा। साथ ही, ओबीसी नेताओं के साथ दिल्ली में केंद्र सरकार से बातचीत करने की भी तैयारी है। नेताओं ने कहा कि यह लड़ाई ओबीसी समुदाय के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है। हालाँकि नागपुर शहर में मार्च शांतिपूर्ण तरीके से निकाला गया, लेकिन पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए थे। कोई समस्या नहीं हुई।
ओबीसी समुदाय की इस लड़ाई ने महाराष्ट्र में सामाजिक न्याय के मुद्दों को नए सिरे से उजागर किया है। आरक्षण केवल एक सरकारी लाभ नहीं, बल्कि सामाजिक समानता का आधार है। सरकार को इन मांगों को गंभीरता से लेना चाहिए, अन्यथा विदर्भ में ओबीसी समुदाय का असंतोष और बढ़ेगा। इस मार्च की सफलता ने ओबीसी कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाया है और वे अगली लड़ाई के लिए तैयार हैं।
विदर्भ ओबीसी मोर्चा का महाअभियान: आरक्षण अधिकारों के लिए 'ब्लैक जीआर' के खिलाफ हजारों की लड़ाई
नागपुर, 10 अक्टूबर, 2025: महाराष्ट्र के विदर्भ में ओबीसी समुदाय ने अपने आरक्षण अधिकारों के लिए एकजुट होकर आवाज उठाई। नागपुर शहर में आयोजित 'आरक्षण बचाओ महामोर्चा' में हजारों ओबीसी कार्यकर्ताओं, नेताओं और आम नागरिकों ने भाग लिया। यह मार्च ओबीसी समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ने वाले विदर्भ ओबीसी मोर्चा संगठन द्वारा आयोजित किया गया था और इसकी मुख्य मांग 2 सितंबर, 2024 को राज्य सरकार द्वारा जारी 'ब्लैक जीआर' (सरकारी प्रस्ताव) को निरस्त करना था। इस प्रस्ताव को ओबीसी आरक्षण पर हमला बताते हुए, प्रदर्शनकारियों ने सरकार की नींद उड़ा दी।
मार्च सुबह 10 बजे नागपुर के झांसी चौक से शुरू हुआ। वहां से शुरू हुआ भव्य जुलूस रेसकोर्स रोड, सिविल लाइंस और मनपा चौक होते हुए आगे बढ़ा। मार्च में शामिल कार्यकर्ताओं ने शहर के मुख्य मार्गों पर 'ओबीसी आरक्षण ज़िंदाबाद', 'काला जीआर खत्म करो', 'हम आरक्षण का अधिकार नहीं छोड़ेंगे' जैसे नारे लगाकर अपना रोष व्यक्त किया। मार्च में महिलाओं, युवाओं और छात्रों का एक बड़ा वर्ग शामिल हुआ। विशेषकर विदर्भ के ग्रामीण इलाकों के किसानों और मजदूरों ने इस मार्च को दिशा दी। विदर्भ ओबीसी मोर्चा संगठन के प्रमुख नेता प्रकाश गजभिये ने मार्च का समापन करते हुए कहा, "2 सितंबर का यह काला जीआर ओबीसी समुदाय के कंधों पर थोपा गया अन्याय है। यह प्रस्ताव शैक्षणिक और नौकरी के आरक्षण को प्रभावित करता है। सरकार को तुरंत इसके कार्यान्वयन पर रोक लगानी चाहिए और इसे रद्द करना चाहिए। अन्यथा, हमारी लड़ाई और भी तेज होगी।"
यह विवादास्पद 'काला जीआर' क्या है? राज्य सरकार द्वारा 2 सितंबर, 2024 को जारी इस प्रस्ताव में ओबीसी आरक्षण के कुछ प्रावधानों में बदलाव किया गया था। इसमें ओबीसी को मिलने वाले 27 प्रतिशत आरक्षण में कुछ नए मानदंड लागू किए गए, जिससे क्रीमी लेयर की परिभाषा बदल गई और कई परिवारों के आरक्षण से वंचित होने की संभावना पैदा हो गई। साथ ही, आरक्षण की पात्रता की जाँच के लिए कुछ विभागों में कड़े नियम लागू किए गए, जिससे विदर्भ और मराठवाड़ा के ओबीसी समुदाय में असंतोष पैदा हुआ। ओबीसी नेताओं के अनुसार, यह प्रस्ताव मराठा आरक्षण के नाम पर ओबीसी के अधिकारों का अतिक्रमण करता है। ओबीसी समुदाय को डर है कि पिछले साल मराठा समुदाय को मिले 10 प्रतिशत आरक्षण के बाद ओबीसी आरक्षण कम हो जाएगा। इसी पृष्ठभूमि में यह महामोर्चा निकाला गया।
मार्च में शामिल एक युवा कार्यकर्ता ने कहा, "हम पढ़ाई करते हैं, नौकरी के लिए संघर्ष करते हैं, लेकिन अगर आरक्षण नहीं होगा तो हमारा भविष्य क्या होगा? सरकार ने हमारे अधिकारों पर हमला किया है। हम यह लड़ाई नहीं छोड़ेंगे।" मार्च में शामिल लोग विभिन्न बैनर, तख्तियाँ और नारे लिखे हुए मार्च कर रहे थे। कहीं कलाकारों ने नाटक करके सरकार की नीतियों का मज़ाक उड़ाया, तो कहीं ओबीसी नेताओं की तस्वीरें लेकर जुलूस निकाले। मार्च मनपा चौक पर समाप्त हुआ, जहाँ विदर्भ ओबीसी मोर्चा संगठन के नेताओं ने एक सभा को संबोधित किया। प्रदेश अध्यक्ष रमेश बोंधले ने कहा, "महाराष्ट्र में ओबीसी समुदाय की आबादी 52 प्रतिशत है। हमें न्याय चाहिए। यह मार्च तो बस शुरुआत है। आने वाले दिनों में राज्यव्यापी आंदोलन होगा।"
यह मार्च केवल नागपुर तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अमरावती, अकोला, वाशिम, भंडारा और चंद्रपुर समेत विदर्भ के अन्य जिलों के ओबीसी संगठनों ने भी इसका समर्थन किया है। विदर्भ ओबीसी मोर्चा संगठन ने कहा कि यह लड़ाई न्यायिक स्तर पर भी लड़ी जाएगी। यह प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट में चल रहे ओबीसी आरक्षण मामले में एक अहम पड़ाव साबित हो सकता है। इस बीच, राज्य सरकार की ओर से अभी तक इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालाँकि, ओबीसी नेताओं के अनुसार, अगर सरकार इस प्रस्ताव को तुरंत वापस नहीं लेती है, तो विदर्भ में एक ज़ोरदार आंदोलन होगा।
ओबीसी आरक्षण के इतिहास पर नज़र डालें तो मंडल आयोग की सिफारिशों के अनुसार 1990 से ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है। महाराष्ट्र में, मराठा, धनगर और अन्य समुदायों की मांगों के कारण भले ही आरक्षण बढ़ा हो, ओबीसी अधिकारों की रक्षा करना ज़रूरी है। यह मार्च ओबीसी समुदाय की एकता का प्रतीक बन गया है और इसका राज्य के राजनीतिक माहौल पर भी असर पड़ सकता है। आगामी चुनावों की पृष्ठभूमि में, ओबीसी मतदाताओं का यह गुस्सा सत्तारूढ़ दलों के लिए चिंता का विषय बन गया है।
विदर्भ ओबीसी मोर्चा संगठन ने मार्च के बाद विरोध प्रदर्शन की योजना की घोषणा की। इसमें घोषणा की गई कि अगर 15 अक्टूबर तक 'काला आरक्षण' वापस नहीं लिया गया, तो पूरे राज्य में काला दिवस मनाया जाएगा। साथ ही, ओबीसी नेताओं के साथ दिल्ली में केंद्र सरकार से बातचीत करने की भी तैयारी है। नेताओं ने कहा कि यह लड़ाई ओबीसी समुदाय के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है। हालाँकि नागपुर शहर में मार्च शांतिपूर्ण तरीके से निकाला गया, लेकिन पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए थे। कोई समस्या नहीं हुई।
ओबीसी समुदाय की इस लड़ाई ने महाराष्ट्र में सामाजिक न्याय के मुद्दों को नए सिरे से उजागर किया है। आरक्षण केवल एक सरकारी लाभ नहीं, बल्कि सामाजिक समानता का आधार है। सरकार को इन मांगों को गंभीरता से लेना चाहिए, अन्यथा विदर्भ में ओबीसी समुदाय का असंतोष और बढ़ेगा। इस मार्च की सफलता ने ओबीसी कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाया है और वे अगली लड़ाई के लिए तैयार हैं।
नागपुर, 10 अक्टूबर, 2025: महाराष्ट्र के विदर्भ में ओबीसी समुदाय ने अपने आरक्षण अधिकारों के लिए एकजुट होकर आवाज उठाई। नागपुर शहर में आयोजित 'आरक्षण बचाओ महामोर्चा' में हजारों ओबीसी कार्यकर्ताओं, नेताओं और आम नागरिकों ने भाग लिया। यह मार्च ओबीसी समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ने वाले विदर्भ ओबीसी मोर्चा संगठन द्वारा आयोजित किया गया था और इसकी मुख्य मांग 2 सितंबर, 2024 को राज्य सरकार द्वारा जारी 'ब्लैक जीआर' (सरकारी प्रस्ताव) को निरस्त करना था। इस प्रस्ताव को ओबीसी आरक्षण पर हमला बताते हुए, प्रदर्शनकारियों ने सरकार की नींद उड़ा दी।
मार्च सुबह 10 बजे नागपुर के झांसी चौक से शुरू हुआ। वहां से शुरू हुआ भव्य जुलूस रेसकोर्स रोड, सिविल लाइंस और मनपा चौक होते हुए आगे बढ़ा। मार्च में शामिल कार्यकर्ताओं ने शहर के मुख्य मार्गों पर 'ओबीसी आरक्षण ज़िंदाबाद', 'काला जीआर खत्म करो', 'हम आरक्षण का अधिकार नहीं छोड़ेंगे' जैसे नारे लगाकर अपना रोष व्यक्त किया। मार्च में महिलाओं, युवाओं और छात्रों का एक बड़ा वर्ग शामिल हुआ। विशेषकर विदर्भ के ग्रामीण इलाकों के किसानों और मजदूरों ने इस मार्च को दिशा दी। विदर्भ ओबीसी मोर्चा संगठन के प्रमुख नेता प्रकाश गजभिये ने मार्च का समापन करते हुए कहा, "2 सितंबर का यह काला जीआर ओबीसी समुदाय के कंधों पर थोपा गया अन्याय है। यह प्रस्ताव शैक्षणिक और नौकरी के आरक्षण को प्रभावित करता है। सरकार को तुरंत इसके कार्यान्वयन पर रोक लगानी चाहिए और इसे रद्द करना चाहिए। अन्यथा, हमारी लड़ाई और भी तेज होगी।"
यह विवादास्पद 'काला जीआर' क्या है? राज्य सरकार द्वारा 2 सितंबर, 2024 को जारी इस प्रस्ताव में ओबीसी आरक्षण के कुछ प्रावधानों में बदलाव किया गया था। इसमें ओबीसी को मिलने वाले 27 प्रतिशत आरक्षण में कुछ नए मानदंड लागू किए गए, जिससे क्रीमी लेयर की परिभाषा बदल गई और कई परिवारों के आरक्षण से वंचित होने की संभावना पैदा हो गई। साथ ही, आरक्षण की पात्रता की जाँच के लिए कुछ विभागों में कड़े नियम लागू किए गए, जिससे विदर्भ और मराठवाड़ा के ओबीसी समुदाय में असंतोष पैदा हुआ। ओबीसी नेताओं के अनुसार, यह प्रस्ताव मराठा आरक्षण के नाम पर ओबीसी के अधिकारों का अतिक्रमण करता है। ओबीसी समुदाय को डर है कि पिछले साल मराठा समुदाय को मिले 10 प्रतिशत आरक्षण के बाद ओबीसी आरक्षण कम हो जाएगा। इसी पृष्ठभूमि में यह महामोर्चा निकाला गया।
मार्च में शामिल एक युवा कार्यकर्ता ने कहा, "हम पढ़ाई करते हैं, नौकरी के लिए संघर्ष करते हैं, लेकिन अगर आरक्षण नहीं होगा तो हमारा भविष्य क्या होगा? सरकार ने हमारे अधिकारों पर हमला किया है। हम यह लड़ाई नहीं छोड़ेंगे।" मार्च में शामिल लोग विभिन्न बैनर, तख्तियाँ और नारे लिखे हुए मार्च कर रहे थे। कहीं कलाकारों ने नाटक करके सरकार की नीतियों का मज़ाक उड़ाया, तो कहीं ओबीसी नेताओं की तस्वीरें लेकर जुलूस निकाले। मार्च मनपा चौक पर समाप्त हुआ, जहाँ विदर्भ ओबीसी मोर्चा संगठन के नेताओं ने एक सभा को संबोधित किया। प्रदेश अध्यक्ष रमेश बोंधले ने कहा, "महाराष्ट्र में ओबीसी समुदाय की आबादी 52 प्रतिशत है। हमें न्याय चाहिए। यह मार्च तो बस शुरुआत है। आने वाले दिनों में राज्यव्यापी आंदोलन होगा।"
यह मार्च केवल नागपुर तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अमरावती, अकोला, वाशिम, भंडारा और चंद्रपुर समेत विदर्भ के अन्य जिलों के ओबीसी संगठनों ने भी इसका समर्थन किया है। विदर्भ ओबीसी मोर्चा संगठन ने कहा कि यह लड़ाई न्यायिक स्तर पर भी लड़ी जाएगी। यह प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट में चल रहे ओबीसी आरक्षण मामले में एक अहम पड़ाव साबित हो सकता है। इस बीच, राज्य सरकार की ओर से अभी तक इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालाँकि, ओबीसी नेताओं के अनुसार, अगर सरकार इस प्रस्ताव को तुरंत वापस नहीं लेती है, तो विदर्भ में एक ज़ोरदार आंदोलन होगा।
ओबीसी आरक्षण के इतिहास पर नज़र डालें तो मंडल आयोग की सिफारिशों के अनुसार 1990 से ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है। महाराष्ट्र में, मराठा, धनगर और अन्य समुदायों की मांगों के कारण भले ही आरक्षण बढ़ा हो, ओबीसी अधिकारों की रक्षा करना ज़रूरी है। यह मार्च ओबीसी समुदाय की एकता का प्रतीक बन गया है और इसका राज्य के राजनीतिक माहौल पर भी असर पड़ सकता है। आगामी चुनावों की पृष्ठभूमि में, ओबीसी मतदाताओं का यह गुस्सा सत्तारूढ़ दलों के लिए चिंता का विषय बन गया है।
विदर्भ ओबीसी मोर्चा संगठन ने मार्च के बाद विरोध प्रदर्शन की योजना की घोषणा की। इसमें घोषणा की गई कि अगर 15 अक्टूबर तक 'काला आरक्षण' वापस नहीं लिया गया, तो पूरे राज्य में काला दिवस मनाया जाएगा। साथ ही, ओबीसी नेताओं के साथ दिल्ली में केंद्र सरकार से बातचीत करने की भी तैयारी है। नेताओं ने कहा कि यह लड़ाई ओबीसी समुदाय के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है। हालाँकि नागपुर शहर में मार्च शांतिपूर्ण तरीके से निकाला गया, लेकिन पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए थे। कोई समस्या नहीं हुई।
ओबीसी समुदाय की इस लड़ाई ने महाराष्ट्र में सामाजिक न्याय के मुद्दों को नए सिरे से उजागर किया है। आरक्षण केवल एक सरकारी लाभ नहीं, बल्कि सामाजिक समानता का आधार है। सरकार को इन मांगों को गंभीरता से लेना चाहिए, अन्यथा विदर्भ में ओबीसी समुदाय का असंतोष और बढ़ेगा। इस मार्च की सफलता ने ओबीसी कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाया है और वे अगली लड़ाई के लिए तैयार हैं।