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जम्मू-कश्मीर राज्यसभा: अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहले चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जीतीं 3 सीटें!

श्रीनगर, 24 अक्टूबर, 2025 (विशेष संवाददाता):अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के ऐतिहासिक फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर में पहला राज्यसभा चुनाव हुआ और यह नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के लिए एक बड़ी जीत साबित हुआ। चार सीटों के लिए हुए इस अप्रत्यक्ष चुनाव में सत्तारूढ़ एनसी ने तीन सीटें जीतीं, जबकि भाजपा को केवल एक सीट मिली। यह परिणाम जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक परिदृश्य पर एनसी के प्रभुत्व और केंद्र सरकार की अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की नीति के प्रभाव को दर्शाता है। चुनाव आयोग द्वारा आज घोषित परिणामों के अनुसार, एनसी उम्मीदवार चौधरी मोहम्मद रजवान (58 मतों से जीते), सज्जाद किचलू (57 मतों से जीते) और गुरविंदर सिंह उर्फ ​​शम्मी ओबेरॉय (31 मतों से जीते) राज्यसभा में प्रवेश करेंगे। हालाँकि, भाजपा के सत शर्मा 32 मतों के साथ एकमात्र सीट पर विजयी हुए।
इस चुनाव की पृष्ठभूमि बता दें कि 5 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का फैसला किया था। इस अनुच्छेद ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया था, जिससे राज्य को अलग संविधान, झंडा और बाहरी लोगों द्वारा संपत्ति खरीदने पर प्रतिबंध जैसी स्वायत्तता मिली थी। इस फैसले के बाद, जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों - जम्मू-कश्मीर और लद्दाख - में विभाजित कर दिया गया। इस बदलाव के बाद, विधानसभा सदस्यों द्वारा राज्यसभा सदस्यों का चुनाव पहली बड़ी राजनीतिक परीक्षा का मैदान था। चुनाव आयोग ने तीन अलग-अलग अधिसूचनाओं - दो सीटों के लिए अलग मतदान और दो सीटों के लिए संयुक्त मतदान - के माध्यम से इस प्रक्रिया को लागू किया। जम्मू-कश्मीर विधानसभा के 90 सदस्यों ने इस मतदान में भाग लिया, जिससे यह परिणाम स्थानीय राजनीति का एक विश्वसनीय दर्पण बन गया। नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने परिणाम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, "यह जीत केवल हमारी नहीं, बल्कि जम्मू-कश्मीर के लोगों की आकांक्षाओं और स्वायत्तता की भी है। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद भी हमारी ताकत बनी हुई है और हम राज्यसभा में राज्य को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को पुरजोर तरीके से उठाएंगे।" नेशनल कॉन्फ्रेंस की तीन सीटें विधानसभा में पार्टी के बहुमत का प्रत्यक्ष प्रतिबिंब हैं। पार्टी ने कश्मीर घाटी के मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में मजबूत समर्थन बनाए रखा है, और गुरविंदर सिंह शम्मी ओबेरॉय की जीत विशेष रूप से उल्लेखनीय है। वह जम्मू-कश्मीर से राज्यसभा में प्रवेश करने वाले पहले सिख नेता हैं। चुनाव परिणाम विविधता से समृद्ध इस क्षेत्र के राजनीतिक प्रतिनिधित्व का प्रतीक हैं।
दूसरी ओर, भाजपा ने जम्मू क्षेत्र के हिंदू-बहुल निर्वाचन क्षेत्रों पर अपनी पकड़ बनाए रखी। सत शर्मा की जीत जम्मू में पार्टी के प्रभाव का संकेत है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र रैना ने कहा, "यह जीत केंद्र सरकार की विकासोन्मुखी नीतियों का प्रमाण है। अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण ने जम्मू-कश्मीर को मुख्यधारा में ला दिया है, और हम राज्यसभा में भी इन बदलावों का समर्थन करेंगे।" हालाँकि, भाजपा की एक सीट की जीत ने एक बार फिर कश्मीर घाटी में पार्टी की कमज़ोर पकड़ को उजागर किया है। पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में, भाजपा ने जम्मू में केवल कुछ सीटें जीती थीं, जिससे राज्यसभा में भी उसका प्रतिनिधित्व सीमित हो गया था।
अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण की पृष्ठभूमि को याद करें तो यह निर्णय भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था। 1947 के विभाजन के बाद, जम्मू-कश्मीर ने भारत में शामिल होने के लिए अनुच्छेद 370 को स्वीकार किया था, जिसने राज्य को आंतरिक मामलों में स्वायत्तता प्रदान की थी। हालाँकि, इस अनुच्छेद पर विवाद दशकों तक जारी रहा। केंद्र सरकार का तर्क था कि अनुच्छेद 370 ने क्षेत्र में विकास को अवरुद्ध कर दिया था और आतंकवाद को बढ़ावा दिया था। 2019 के फैसले के बाद, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम लागू हुआ, जिसने क्षेत्र को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया। इस बदलाव के बाद, केंद्र को चुनाव, विकास योजनाओं और सुरक्षा मामलों पर सीधा नियंत्रण प्राप्त हो गया। हालाँकि, स्थानीय नेता राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग करते रहे हैं। आज के राज्यसभा चुनावों ने भी यही तस्वीर पेश की - हालाँकि नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसी स्थानीय पार्टियों को समर्थन मिल रहा है, लेकिन भाजपा की उपस्थिति से इनकार नहीं किया जा सकता। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस चुनाव का राष्ट्रीय राजनीति पर भी असर पड़ेगा। राज्यसभा में कुल 245 सदस्य हैं, और जम्मू-कश्मीर की चार सीटें केंद्र शासित प्रदेश का प्रतिनिधित्व करती हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस को तीन सीटें मिलने से विपक्षी दलों को राज्यसभा में कुछ समर्थन मिलेगा, जबकि भाजपा सत्तारूढ़ गठबंधन के पक्ष में एक सीट ले जाएगी। आने वाले दिनों में, राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने के मुद्दे पर चर्चा होगी, जिसमें ये नवनिर्वाचित सदस्य अहम भूमिका निभाएँगे। साथ ही, गुरविंदर सिंह शम्मी ओबेरॉय जैसे नेताओं के आने से विविधता और समावेशिता का मुद्दा और भी अहम हो जाएगा।
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान कोई विवाद या अनियमितता नहीं हुई। मतदान विधानसभा भवन में हुआ और प्रत्येक सदस्य ने एक सीट के लिए मतदान किया। परिणाम घोषित होते ही श्रीनगर और जम्मू स्थित सत्तारूढ़ दलों के कार्यालयों में जश्न का माहौल रहा। हालाँकि, कुछ विपक्षी नेताओं ने परिणामों को 'अधूरा' बताया और राज्य का दर्जा बहाल करने की लड़ाई में तेज़ी लाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।
कुल मिलाकर, यह चुनाव जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक भविष्य की दिशा तय करने वाला था। अनुच्छेद 370 को हटाए हुए छह साल बीत जाने के बावजूद, यह साबित हो गया है कि स्थानीय दल मज़बूत बने हुए हैं। देखना यह है कि भविष्य के विधानसभा चुनावों में भी यही रुझान देखने को मिलता है या नहीं। हालांकि यह परिणाम जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए उम्मीद की किरण है, लेकिन पूर्ण स्वायत्तता की मांग बनी रहेगी।

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