संविधान ने दलित-आदिवासी समुदाय को दिया राष्ट्रपति पद; महिला सशक्तिकरण का एक नया अध्याय - न्यायमूर्ति बी.आर. गवई
मुंबई/नई दिल्ली, 17 नवंबर, 2025 – भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने सोमवार को संविधान दिवस के अवसर पर आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में संविधान सभा में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के अंतिम भाषण के महत्व पर प्रकाश डाला। न्यायमूर्ति गवई ने दृढ़तापूर्वक कहा, "संविधान सभा में संविधान का प्रारूप प्रस्तुत करते हुए डॉ. आंबेडकर द्वारा दिया गया भाषण संविधान के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण भाषण है। देश के प्रत्येक कानून के छात्र को इसे अवश्य पढ़ना चाहिए।"
उन्होंने आगे कहा, "इसी संविधान की बदौलत आज भारत में अनुसूचित जाति (दलित) समुदाय के दो व्यक्ति देश के राष्ट्रपति बने हैं, जबकि वर्तमान राष्ट्रपति अनुसूचित जनजाति की एक महिला हैं।" यहाँ उन्होंने वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का उल्लेख किया।
न्यायमूर्ति गवई ने देश में महिला सशक्तिकरण पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, "आज तक कुल 15 लोग भारत के सर्वोच्च पद, राष्ट्रपति, पर आसीन हुए हैं। इनमें के.आर. नारायणन और रामनाथ कोविंद, दोनों अनुसूचित जाति से हैं। प्रतिभा देवीसिंह पाटिल और वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, दोनों महिलाएँ, इस पद पर आसीन रही हैं।"
25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में डॉ. आंबेडकर का ऐतिहासिक भाषण आज भी प्रेरणादायक माना जाता है। इसमें उन्होंने सामाजिक-आर्थिक समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय के मूल्यों पर ज़ोर दिया था। मुख्य न्यायाधीश गवई ने इस भाषण को विधि पाठ्यक्रम में शामिल करने की सिफ़ारिश की है, ताकि नई पीढ़ी संविधान की वास्तविक शक्ति और उसके पीछे छिपे दृष्टिकोण को समझ सके।
कार्यक्रम में उपस्थित विधि विशेषज्ञों, न्यायाधीशों और छात्रों ने मुख्य न्यायाधीश गवई के विचारों से सहमति जताते हुए संविधान के मूल्यों को जीवित रखने की अपील की। न्यायमूर्ति गवई ने अपने भाषण के अंत में कहा, "संविधान केवल एक कागज़ का टुकड़ा नहीं है, यह जीवन जीने का एक तरीका है।"
संविधान दिवस के अवसर पर देश भर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं और डॉ. आंबेडकर के विचारों को दोहराया जा रहा है। कई वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए कि दलितों, आदिवासियों और महिलाओं को समाज की मुख्यधारा में लाने में भारतीय संविधान की भूमिका अद्वितीय है।
मुंबई/नई दिल्ली, 17 नवंबर, 2025 – भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने सोमवार को संविधान दिवस के अवसर पर आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में संविधान सभा में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के अंतिम भाषण के महत्व पर प्रकाश डाला। न्यायमूर्ति गवई ने दृढ़तापूर्वक कहा, "संविधान सभा में संविधान का प्रारूप प्रस्तुत करते हुए डॉ. आंबेडकर द्वारा दिया गया भाषण संविधान के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण भाषण है। देश के प्रत्येक कानून के छात्र को इसे अवश्य पढ़ना चाहिए।"
उन्होंने आगे कहा, "इसी संविधान की बदौलत आज भारत में अनुसूचित जाति (दलित) समुदाय के दो व्यक्ति देश के राष्ट्रपति बने हैं, जबकि वर्तमान राष्ट्रपति अनुसूचित जनजाति की एक महिला हैं।" यहाँ उन्होंने वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का उल्लेख किया।
न्यायमूर्ति गवई ने देश में महिला सशक्तिकरण पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, "आज तक कुल 15 लोग भारत के सर्वोच्च पद, राष्ट्रपति, पर आसीन हुए हैं। इनमें के.आर. नारायणन और रामनाथ कोविंद, दोनों अनुसूचित जाति से हैं। प्रतिभा देवीसिंह पाटिल और वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, दोनों महिलाएँ, इस पद पर आसीन रही हैं।"
25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में डॉ. आंबेडकर का ऐतिहासिक भाषण आज भी प्रेरणादायक माना जाता है। इसमें उन्होंने सामाजिक-आर्थिक समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय के मूल्यों पर ज़ोर दिया था। मुख्य न्यायाधीश गवई ने इस भाषण को विधि पाठ्यक्रम में शामिल करने की सिफ़ारिश की है, ताकि नई पीढ़ी संविधान की वास्तविक शक्ति और उसके पीछे छिपे दृष्टिकोण को समझ सके।
कार्यक्रम में उपस्थित विधि विशेषज्ञों, न्यायाधीशों और छात्रों ने मुख्य न्यायाधीश गवई के विचारों से सहमति जताते हुए संविधान के मूल्यों को जीवित रखने की अपील की। न्यायमूर्ति गवई ने अपने भाषण के अंत में कहा, "संविधान केवल एक कागज़ का टुकड़ा नहीं है, यह जीवन जीने का एक तरीका है।"
संविधान दिवस के अवसर पर देश भर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं और डॉ. आंबेडकर के विचारों को दोहराया जा रहा है। कई वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए कि दलितों, आदिवासियों और महिलाओं को समाज की मुख्यधारा में लाने में भारतीय संविधान की भूमिका अद्वितीय है।
उन्होंने आगे कहा, "इसी संविधान की बदौलत आज भारत में अनुसूचित जाति (दलित) समुदाय के दो व्यक्ति देश के राष्ट्रपति बने हैं, जबकि वर्तमान राष्ट्रपति अनुसूचित जनजाति की एक महिला हैं।" यहाँ उन्होंने वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का उल्लेख किया।
न्यायमूर्ति गवई ने देश में महिला सशक्तिकरण पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, "आज तक कुल 15 लोग भारत के सर्वोच्च पद, राष्ट्रपति, पर आसीन हुए हैं। इनमें के.आर. नारायणन और रामनाथ कोविंद, दोनों अनुसूचित जाति से हैं। प्रतिभा देवीसिंह पाटिल और वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, दोनों महिलाएँ, इस पद पर आसीन रही हैं।"
25 नवंबर, 1949 को संविधान सभा में डॉ. आंबेडकर का ऐतिहासिक भाषण आज भी प्रेरणादायक माना जाता है। इसमें उन्होंने सामाजिक-आर्थिक समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व और न्याय के मूल्यों पर ज़ोर दिया था। मुख्य न्यायाधीश गवई ने इस भाषण को विधि पाठ्यक्रम में शामिल करने की सिफ़ारिश की है, ताकि नई पीढ़ी संविधान की वास्तविक शक्ति और उसके पीछे छिपे दृष्टिकोण को समझ सके।
कार्यक्रम में उपस्थित विधि विशेषज्ञों, न्यायाधीशों और छात्रों ने मुख्य न्यायाधीश गवई के विचारों से सहमति जताते हुए संविधान के मूल्यों को जीवित रखने की अपील की। न्यायमूर्ति गवई ने अपने भाषण के अंत में कहा, "संविधान केवल एक कागज़ का टुकड़ा नहीं है, यह जीवन जीने का एक तरीका है।"
संविधान दिवस के अवसर पर देश भर में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं और डॉ. आंबेडकर के विचारों को दोहराया जा रहा है। कई वक्ताओं ने विचार व्यक्त किए कि दलितों, आदिवासियों और महिलाओं को समाज की मुख्यधारा में लाने में भारतीय संविधान की भूमिका अद्वितीय है।
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