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मुरादाबाद के मदरसे में सातवीं कक्षा की छात्रा के लिए वर्जिनिटी सर्टिफिकेट की मांग: गुस्से और आश्चर्य की लहर

मुरादाबाद, 24 अक्टूबर, 2025 (विशेष संवाददाता): उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद शहर में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जहाँ एक मदरसे ने सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक नाबालिग छात्रा के दाखिले के लिए वर्जिनिटी सर्टिफिकेट की मांग की है। यह मांग इतनी अजीब और असंवेदनशील है कि इसने पूरे समाज में गुस्से और आश्चर्य की लहर पैदा कर दी है। पाकबड़ा थाना क्षेत्र के इस मदरसे में पढ़ने वाली लड़की के परिवार ने इस मामले में शिकायत दर्ज कराई है और मदरसा प्रबंधन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। इस घटना ने एक बार फिर बालिका शिक्षा, लैंगिक भेदभाव और धार्मिक संस्थाओं की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
यह मामला हाल ही में तब शुरू हुआ, जब लड़की का परिवार उसे नए शैक्षणिक वर्ष के लिए मदरसे में छोड़ने गया था। परिवार के अनुसार, मदरसा प्रबंधन ने उनसे साफ कह दिया, "अगर आप लड़की का वर्जिनिटी सर्टिफिकेट जमा नहीं करेंगे, तो उसे अगली कक्षा में दाखिला नहीं दिया जाएगा।" यह माँग सिर्फ़ मौखिक नहीं थी, बल्कि एक तरह की धमकी थी, जिसने परिवार को स्तब्ध कर दिया। सात साल की नाबालिग बच्ची को ऐसे परीक्षण या प्रमाण पत्र की क्या ज़रूरत है? यह सवाल उठता है। परिवार ने कहा कि वे यह माँग सुनकर स्तब्ध रह गए और तुरंत स्थानीय प्रशासन को मामले की सूचना दी।
लड़की का परिवार एक स्थानीय साधारण परिवार से है, जो अपनी बेटी की धार्मिक शिक्षा के लिए इस मदरसे पर निर्भर है। परिवार के एक सदस्य ने कहा, "हमने अपनी बेटी को अच्छी धार्मिक शिक्षा देने के लिए इस मदरसे में भेजा था। लेकिन ऐसी माँग सुनकर हमें लगा कि यह शिक्षा नहीं, बल्कि अपमान है। सात साल की बच्ची कौमार्य परीक्षण के लिए कैसे तैयार होगी? यह कैसे संभव है?" परिवार ने मदरसा प्रबंधन से बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। उलटे, प्रबंधन ने दाखिला देने से इनकार करने की धमकी दी, जिससे परिवार को वैकल्पिक शिक्षा पर विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
इस घटना के मुरादाबाद शहर में फैलने के बाद, स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं और महिला संगठनों ने इसकी कड़ी निंदा की है। एक स्थानीय महिला अधिकार संगठन ने कहा, "ऐसी माँगें लड़कियों की गरिमा पर हमला हैं। अगर धार्मिक शिक्षण संस्थान ऐसी प्रथाओं को अपनाते हैं तो समाज कैसे सुधर सकता है? यह माँग सिर्फ़ एक लड़की की नहीं, बल्कि सभी लड़कियों के भविष्य की है।" संगठन ने मामले की जाँच की माँग की है और उत्तर प्रदेश सरकार से न्याय की माँग की है। संगठन का यह भी कहना है कि इस घटना की जाँच होनी चाहिए कि क्या उत्तर प्रदेश के अन्य मदरसों और धार्मिक शिक्षण संस्थानों में भी ऐसी प्रथाएँ मौजूद हैं।
हालाँकि उत्तर प्रदेश सरकार और शिक्षा विभाग ने मामले का तुरंत संज्ञान लिया है, लेकिन अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। ज़िला शिक्षा अधिकारी ने कहा, "ऐसी कोई भी माँग क़ानूनन अवैध है। हम तुरंत मामले की जाँच करेंगे और दोषियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।" पाकबारा थाने के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भी बताया कि परिवार द्वारा शिकायत दर्ज कर ली गई है और मदरसा प्रबंधन को तलब किया गया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर आरोप सही पाए जाते हैं, तो संबंधित क़ानूनों के तहत मामला दर्ज किया जाएगा।
इस घटना की पृष्ठभूमि को देखते हुए, उत्तर प्रदेश के धार्मिक शिक्षण संस्थानों में लड़कियों की शिक्षा से जुड़े कई मुद्दे हमेशा सामने आते रहते हैं। पिछले साल भी कुछ मदरसों में लड़कियों को दाखिला न दिए जाने की घटनाएँ सामने आई थीं, जिनमें लैंगिक भेदभाव और पारंपरिक प्रथाओं की भूमिका रही थी। राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग (एनसीपीसीआर) ने ऐसे मामलों पर ध्यान केंद्रित किया है और धार्मिक संस्थानों को बालिका शिक्षा के लिए विशेष दिशानिर्देश लागू करने का आदेश दिया है। लेकिन ऐसी घटनाएँ लगातार हो रही हैं, जिससे लगता है कि इन सिद्धांतों का सख्ती से पालन नहीं हो रहा है। कौमार्य परीक्षण की प्रथा अंतर्राष्ट्रीय कानून द्वारा भी प्रतिबंधित है, और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के तहत लैंगिक भेदभाव को रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं। फिर भी, ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में ऐसी प्रथाएँ जारी हैं।
इस मामले ने न केवल मुरादाबाद, बल्कि पूरे देश में बालिका शिक्षा की प्रगति पर सवाल खड़े कर दिए हैं। बालिका शिक्षा विकास का मूल आधार है, लेकिन इस तरह के अजीबोगरीब फतवे (या माँगें) लड़कियों के आत्मविश्वास और शिक्षा के प्रति उनकी इच्छा को खत्म कर देते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसी घटनाएँ मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं और लड़कियों को समाज से अलग-थलग कर देती हैं। इसके लिए, सरकार से माँग है कि वह धार्मिक शिक्षण संस्थानों के लिए सख्त नियम बनाए, जिनमें बालिका सुरक्षा और समानता को शामिल किया जाए।
मदरसा प्रबंधन ने अभी तक इस मामले पर कोई आधिकारिक रुख़ नहीं अपनाया है। कुछ सूत्रों के अनुसार, प्रबंधन ने इसे एक 'गलतफ़हमी' बताया है, लेकिन परिवार और स्थानीय निवासी इस पर विश्वास नहीं कर रहे हैं। चूँकि मामले की जाँच चल रही है, इसलिए उम्मीद है कि जल्द ही न्याय मिलेगा। यह घटना एक चेतावनी है, जो समाज को आगाह करती है कि शिक्षा के नाम पर हो रहे अन्याय को अब रोकना होगा।

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