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निठारी हत्याकांड में नया मोड़; सुप्रीम कोर्ट ने सुरेंद्र कोली को सभी मामलों में बरी किया

नोएडा, 11 नवंबर, 2025: भारत की न्यायपालिका को एक चौंकाने वाला फैसला मिला है, जब सुप्रीम कोर्ट ने निठारी हत्याकांड के मुख्य आरोपी सुरेंद्र कोली को अंतिम लंबित मामले में बरी कर दिया है। मंगलवार को अदालत ने यह फैसला सुनाया, जिससे इस भयावह मामले में एक नया मोड़ आ गया है। उत्तर प्रदेश के नोएडा स्थित निठारी गाँव में 2005-2006 के बीच बच्चों और युवतियों के रहस्यमय ढंग से लापता होने से शुरू हुआ निठारी हत्याकांड समाज के जेहन में एक काली याद बनकर रह गया है। इस मामले में 16 से ज़्यादा हत्याओं का संदेह था, जिसमें नरभक्षण का भयावह आरोप भी शामिल था। हालाँकि, अब जब कोली को सभी मामलों में बरी कर दिया गया है, तो पीड़ित परिवारों में असंतोष है और न्याय प्रक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं।
निठारी हत्याकांड की पृष्ठभूमि यह है कि दिसंबर 2006 में, नोएडा के डी-5 स्थित एनएसएस परिसर के पास एक बंगले के पीछे कुत्तों द्वारा खोदे गए गड्ढे में मानव हड्डियाँ और खोपड़ियाँ मिली थीं। यह घर एक धनी उद्योगपति मोनिंदर सिंह पंढेर का था। उनके नौकर सुरेंद्र कोली पर हत्याओं का मास्टरमाइंड होने का संदेह था। जाँच से पता चला कि कोली बच्चों और युवतियों को फुसलाकर अपने घर ले आया और उनकी बेरहमी से हत्या कर दी। यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर विवाद का विषय बन गया क्योंकि आरोप लगे कि कुछ पीड़ितों के अंगों को बेचा और खाया जा रहा था। पंढेर पर भी इसमें शामिल होने का आरोप लगाया गया, हालाँकि उसने हमेशा खुद को निर्दोष बताया। जाँच प्रक्रिया बेहद जटिल थी। सीबीआई ने मामले की जाँच अपने हाथ में ली और कई आरोप पत्र दायर किए। सुरेंद्र कोली को शुरू में कई मामलों में दोषी ठहराया गया और मौत की सजा सुनाई गई। उदाहरण के लिए, उसे 2009 में पायल नाम की एक लड़की की हत्या के मामले में मौत की सजा सुनाई गई थी। मोनिंदर सिंह पंढेर को भी कुछ मामलों में दोषी ठहराया गया था, लेकिन अपील प्रक्रिया में उनमें से अधिकांश को पलट दिया गया। हालाँकि, कई मामलों में, कोली और पंढेर दोनों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले 2017 में पंढेर को दो मामलों में बरी कर दिया था, जबकि कोली के मामलों में उसने कहा था कि सबूत अपर्याप्त थे।
इस आखिरी लंबित मामले में, जिसमें एक 6 साल की बच्ची की हत्या शामिल थी, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अभियोजन पक्ष ने मामले को संदेह से परे साबित नहीं किया है। न्यायाधीश ने यह भी कहा कि गवाहों के बयानों में विसंगतियां थीं और प्रत्यक्ष सबूतों को कोली से नहीं जोड़ा जा सकता। अदालत ने अपने फैसले में कहा, "सबूत केवल संदेह पर आधारित नहीं होने चाहिए, बल्कि ठोस और अकाट्य होने चाहिए।" इस फैसले के बाद कोली को तुरंत जमानत मिल जाएगी और वह जेल से रिहा हो जाएगा, भले ही अन्य अपीलें लंबित हों।
इस फैसले के बाद से पीड़ितों के परिवार गुस्से और निराशा में हैं। निठारी गाँव की एक पीड़िता की माँ ने कहा, "हमें अपनी बेटियों की हत्या का बदला कब मिलेगा? यह अदालत क्या कर रही है? हम वर्षों से न्याय का इंतज़ार कर रहे हैं।" सामाजिक कार्यकर्ताओं और बाल अधिकार संगठनों ने भी इस फैसले की आलोचना की है और जाँच प्रक्रिया में खामियों की ओर इशारा किया है। बाल अधिकार कार्यकर्ता शब्बीर अहमद ने कहा, "निठारी कांड ने दिखाया है कि गरीब और नाबालिग लड़कियों की सुरक्षा के मामले में कानून कितना कमज़ोर है।" दूसरी ओर, कुछ कानूनी विशेषज्ञों ने इस फैसले को न्यायपालिका की स्वतंत्रता का उदाहरण माना है। उन्होंने तर्क दिया, "यह एक संवैधानिक अधिकार है कि किसी भी आरोपी को तब तक दोषी नहीं माना जाना चाहिए जब तक कि वह निर्दोष साबित न हो जाए।" निठारी हत्याकांड भारत की आपराधिक न्याय व्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका था। 2006 में सामने आए इस मामले ने राजनीतिक स्तर पर भी हलचल मचा दी थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की सरकार की आलोचना हुई थी और सीबीआई जाँच की माँग की गई थी। 16 संदिग्ध हत्याओं में से केवल 10 मामले ही अदालत तक पहुँच पाए, और उनमें से अधिकांश अब बरी हो चुके हैं। कोली और पंढेर दोनों वर्तमान में जेल में हैं, लेकिन इस फैसले के बाद कोली की रिहाई संभव लगती है। पंढेर के मामले में अपील की प्रक्रिया भी चल रही है।
इस फैसले के बाद, उत्तर प्रदेश सरकार ने दोबारा जाँच की संभावना से इनकार नहीं किया है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "अगर नए सबूत मिलते हैं, तो हम कानून के दायरे में कार्रवाई करेंगे।" हालाँकि, 19 साल बाद भी, पीड़ित परिवार न्याय पाने के अपने संघर्ष में अकेले हैं। निठारी गाँव के निवासियों में भय और असुरक्षा की भावना बनी हुई है, और इस मामले को बाल सुरक्षा के लिए एक सबक के रूप में पढ़ाया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला निठारी हत्याकांड के इतिहास में एक नया अध्याय है। यह जाँच प्रणाली की विफलता का प्रतीक है, जिसकी चर्चा हो रही है। भविष्य में ऐसे मामलों में कड़े कानूनों और तकनीक के इस्तेमाल की ज़रूरत है, ताकि निर्दोषों को न्याय मिले और दोषियों को सज़ा मिले। सामाजिक कार्यकर्ता अपील कर रहे हैं कि समाज को निठारी पीड़ितों की यादों को संजोते हुए इस घटना से सीख लेनी चाहिए।

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